जयराज खवडना मरशिया

खत्री तारी खोट, काठी मटशे ना कदी
चारण ने दइ चोट, जतो रियो जयराजिया (१)

नकरा वेणे नेह, खाटा मीठा द्ये खवड
आज वियो ग्यो एह, जगत तजी जयराजिया (२)

याचक तारी याद, साद सिवाये शुं करे
वचन मही भर वाद, जोता रह्या जयराजिया (३)

अणसुण एक अवाज, दर्शन पण दीधा नही
सरगापरना साज, जाजा दुखद जयराजिया (४)

पाकल रूडू पंड, खंडित आखु थ्यु खवड
दीधो मोटो दंड, जमराजे जयराजिया (५)

बांधो ई अकबंध, खींटाले मामो खवड
आज की ग्यो अंध, जोया वण जयराजिया (६)

परथम धरतो पाय, मोत परे आ मरशिया
लखता जाय लखाय, जाशिलथी जयराजिया (७)

दरकारे तम द्वार, दोड मटावत सौ दरद
दुख दीधा दरबार, रुदिये खूब रवाउता (८)

सेज नही अब सख्ख, अख्ख मही रइ ग्यो अमर
दिन राते दइ दख्ख, धोखा राखे धारियो (९)

साचो मारो स्नेह, वेह मुजब में वापर्यो
दाज्यो तारो देह, धगधगता अम धारिया (१०)

-कवि धार्मिक गढवी जांबुडा

9712422105